पोस्टमार्टम का नियम

हर टाइगर की मौत के बाद सरकार द्वारा पोस्टमार्टम ज़रूरी किया गया है ताकि मौत का सही कारण पता लगाया जा सके।

शिकार की पहचान

पोस्टमार्टम से पता चलता है कि टाइगर की मौत प्राकृतिक है या शिकारियों द्वारा ज़हर या हथियार से की गई है।

बीमारियों की जांच

जांच में यह भी पता चलता है कि टाइगर किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित था या नहीं, जिससे अन्य बाघों को बचाया जा सके।

पर्यावरणीय कारण

कभी-कभी पानी की कमी, जंगल की आग या इंसानी दखल जैसी वजहों से भी मौत होती है, जिसे पोस्टमार्टम उजागर करता है।

डेटा संग्रह

हर रिपोर्ट को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) में दर्ज किया जाता है, जो भविष्य की नीति बनाने में मदद करता है।

संरक्षण की मजबूती

पोस्टमार्टम से मिले तथ्य बाघों की सुरक्षा योजनाओं और रिजर्व क्षेत्रों में निगरानी को और मज़बूत बनाते हैं।

वन विभाग की ज़िम्मेदारी

पोस्टमार्टम में वन विभाग, डॉक्टर और विशेषज्ञ मिलकर काम करते हैं ताकि हर मौत का सच सामने लाया जा सके।

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